तीसरी कसम फिल्म की आत्मा है "चलत मुसाफिर मोह लिया रे", शैलेन्द्र द्वारा लिखा गया यह गीत न केवल मधुर है, बल्कि फिल्म की कहानी और पात्रों की भावनाओं को भी गहराई से दर्शाता है।
यह गीत लोकगीतों की शैली में लिखा गया है, जिसमें भावनाओं और संकेतों पर अधिक ज़ोर दिया जाता है। "पिंजरे वाली मुनिया" का प्रयोग न तो शाब्दिक अर्थ में लिया जाना चाहिए, और न ही यह तर्कसंगत है कि यह मैना बरफी, कपड़ा और पान खाती है। यह एक रूपक है जो नारी के आकर्षण और पुरुष के मोह को दर्शाता है।
शैलेन्द्र ने नौटंकी वाली बाई को "पिंजरे की मुनिया" और गाड़ीवान हीरामन को "चलत मुसाफिर" बताकर कहानी के व्यंग्य और करुणा को उजागर किया है। समाज द्वारा त्याग दी गई और नौटंकी के पिंजरे में कैद यह मैना, हीरामन के दिल को छू लेती है।
गीत में यह सवाल उठाया गया है कि क्या "पिंजरे की मुनिया"
हमेशा के लिए कैद रहेगी और "चलत मुसाफिर"
हमेशा के लिए घायल रहेगा? क्या वे कभी एक साथ रह पाएंगे? देवदास और पार्वती की तरह उनका भी प्रेम अधूरा रहेगा?
यह गीत मजाकिया लग सकता है, लेकिन शैलेन्द्र का मकसद गहरा है। वह समाज द्वारा नकारी गई महिलाओं की पीड़ा को उजागर करना चाहते हैं।
वह 'पिंजरे वाली मुनिया' और कोई नहीं यह नौटंकी की अभागन नर्तकी है जिसे समाज सम्मान देता है, लेकिन उसे कभी स्वीकार नहीं करता। वहीदा रहमान ने इस 'बाई' को अमर कर दिया है।
"पिंजरे वाली मुनिया" केवल मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि समाज के यथार्थ और प्रेम की पीड़ा को समझने के लिए भी है। मन्ना डे द्वारा गाया गया यह गीत, शैलेन्द्र के शब्दों और वहीदा रहमान के अभिनय के साथ, तीसरी कसम फिल्म का एक अविस्मरणीय हिस्सा बन गया है।
गीत में कृष्ण धवन द्वारा अभिनीत हीरामन को डफली बजाते हुए दिखाया गया है, जो फिल्म में उनकी चरित्र की मजबूरियों को दर्शाता है। यह गीत शास्त्रीय संगीत और लोक संगीत का मिश्रण है, जो फिल्म के ग्रामीण परिवेश को दर्शाता है। यह विश्लेषण आपको "चलत मुसाफिर मोह लिया रे" गीत को गहराई से समझने में मदद करेगा।